मुखोटे है या चेहरे।
अन्दर कुछ है बाहर कुछ,
कितने सच्चे झूठे है ये मुखौटे।
असली परछाई पहचान ना सके,
असली गहराई समझ ना सके,
असली आवाज़ सुन ना सके,
ऐसे उल्टे सीधे है ये दिखावे।
दुनिया के चेहरे पर,
दाग है ये मुखौटे,
कोई तो ऊतार दे इन्हें,
जिन्होंने बाँध रखे है सभी के चेहरे,
अन्दर के राम को जलाकर कैसे है ये जलते दशहरे।
चेहरे है या मुखौटे,
मुखोटे है या चेहरे।।
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