कभी तुम खुद से बात करो,
कभी तुम खुद से बोलो।
अपनी नज़र में तुम क्या हो ?
ये कभी अपने मन के तराजू में तोलो।।
तन के तुम बैठे ना रहो,
अपनी शौहरत की इमारत में।
कभी तो खुद को खड़े करो,
अपनी आत्मा की अदालत में।।
अपनी अच्छाइयों को ना गिनो,
अपनी कमियों को भी टटोलो।
कभी तो खुद को पहचानो,
अपने अंतर मन की आँखों से ।।
आसमान में उड़ने वालो,
कभी तो धरती पर लौटो।
कभी तो इस झूठे अभिमान को,
अपनी पुरानी सरल सादगी से भी पोछो।।
कभी तुम खुद से बात करो।
कभी तुम खुद से बोलो।।
कभी तो इस जीवन में,
तुम अपनों के अपने बनकर भी देखो।।
कभी तुम खुद से बोलो।
अपनी नज़र में तुम क्या हो ?
ये कभी अपने मन के तराजू में तोलो।।
तन के तुम बैठे ना रहो,
अपनी शौहरत की इमारत में।
कभी तो खुद को खड़े करो,
अपनी आत्मा की अदालत में।।
अपनी अच्छाइयों को ना गिनो,
अपनी कमियों को भी टटोलो।
कभी तो खुद को पहचानो,
अपने अंतर मन की आँखों से ।।
आसमान में उड़ने वालो,
कभी तो धरती पर लौटो।
कभी तो इस झूठे अभिमान को,
अपनी पुरानी सरल सादगी से भी पोछो।।
कभी तुम खुद से बात करो।
कभी तुम खुद से बोलो।।
कभी तो इस जीवन में,
तुम अपनों के अपने बनकर भी देखो।।
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