रात के इस समुन्दर में,
कोई मुझे तैरना सिखा दे,
इन काली काली परछाईयो से,
कोई मुझे दौड़ना सिखा दे।
दूर से दिखने वाली,
उन चम्म चम्माती,
उन उमीदों की रौशनी तक कोई मुझे पंहुचा दे।
ना जाने कैसे कहूँगी,
ना जाने कैसे कहूँगी,
कैसे समझाऊँगी,
अपना दर्द,
अपना डर उसे,
अपना डर उसे,
बस शुकर्गुजार रहूंगी मैं उसकी,
वफादार रहूंगी मैं उसकी,
अभिमान बनुगी मैं उसकी,
जो इस भीड़ में भी मुझे ज़िन्दगी को जीना सिखा दे।
Kaun hai wo bhai :P
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