Friday, October 23, 2015

बगिया के कुछ शायराना रंग - (7)

" उड़ती थी,
थिरकती थी मैं,
ना जाने कहाँ फिरथी थी मैं ,
उसके साए की तलाश में ,
अनजाने राहो पर भटकती थी मैं ,
गम्मो को अपनाकर बिलक बिलक कर रोती थी मैं,
अरे। कोई तो उससे जाकर समझाओ ,
कितनी अकेली हो गयी हु तुम बिन मैं।। "

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