Saturday, July 27, 2013

पैसा...

पैसा।पैसा।पैसा। 
ये कैसा नशा है तेरा। 

अमीरों का पैसा,गरीबो का पैसा। 
व्यापारी का पैसा,बेरोज़गारी का पैसा। 
ईमानदारी का पैसा,भ्रष्टाचारी का पैसा। 
उजाले को अंधकार बना रहा है तेरा ये नशा। 

पैसा।पैसा।पैसा। 
ये कैसा नशा है तेरा।

भाई को भाई से लडवा रहा है पैसा,
पति को पत्नी से मिलवा रहा है पैसा,
बच्चे के जन्म का जशन करवा रहा है पैसा ,
शमशान में मृतक को अग्नि दिलवा रहा है पैसा,
मंदिरों में पुजारियों को धर्म से भटका रहा है पैसा,
ईश्वर से मिलने की टिकेट दिलवा रहा है पैसा,
अच्छे भले इंसान को हैवान बना रहा है पैसा ये तेरा नशा। 

खाने को रोटी नहीं,
पीने को पानी नहीं,
जीने की हवा नहीं,
रहने की जगह नहीं,
पैसा। ये कैसा खेल तूने है खेला?
भगवान की धरती,
भगवान के ही लोग,
पर सब पर चड़ा दिया तूने क्यों अपने पैसो का नशा।

#Quote : Today people respect the money not the person. #BitterTruth 

No comments:

Post a Comment