Tuesday, July 23, 2013

अनोखी मुलाकात ...

तुझसे मिलना एक बहाना था,
तुझ संग चलना एक इशारा था,
ना जाने तू कहाँ से आया था,
ना जाने मुझे कहाँ तक जाना था। 

नादान थे हम,
कितने बेजान थे हम,
सच्चे प्यार से अनजान थे हम,
तब जाके कहीं मिले हम,
तब जाके संग खिले हम,
तब जाके एक एहसास हुआ,
तब जाके ये विश्वास हुआ,
जब रब्ब का सामना मेरा तुझसे मिलने के ही बाद हुआ। 

तब जाके ये दिल ने कहाँ,
तब जाके मैंने ये समझा ,
तुझसे मिलना सच्च  में एक बहाना था,
तुझ संग चलना सच में एक इशारा था,
क्योंकि रब्ब को ही हमारी ये अनोखी मुलाकात जो कराना  था।

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